नूतन लाल साहू

 आलस्य


जिसने कहां कल

दिन गया टल

जिसने कहां परसो

बीत गए बरसो

जिसने कहां आज

उसने किया राज

अंदर मन का ताला खोल

हो जायेगा,निज से पहचान

खुल गया,अंदर का कण कण तो

बढ़ जायेगी,जीवन की शान

दैव दैव तो आलसी पुकारे

दूर करे,आंखो का परदा

जग की ममता को छोड़

भगवान से नाता जोड़

जिस जिस ने प्रभु से प्यार किया

श्रद्धा से मालामाल हुआ

एक शब्द दो कान है

एक नज़र दो आंख है

यूं तो गुरु गोबिंद एक ही है

झांक सके तो झांक

मत उलझो, तुम

जहां के झूठे ख्यालों में

जो अपने को जान गया

वो ही भवसागर पार हुआ

पाया है,मानुष का यह तन

नर से तू बन जा,नारायण

वर्तमान को साथ ले

बीते से कुछ सीख

चाहता है,परम सुख तो

आलस्य को त्याग दें

जिसने कहां कल

दिन गया टल

जिसने कहां परसो

बीत गए बरसो

जिसने कहां आज

उसने किया राज


नूतन लाल साहू

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