डॉ०रामबली मिश्र

 हरिहरपुरी की कुण्डलिया


नारी अरि होती नहीं, नारी मित्र समान।

जो नारी को समझता, वह रखता शिव ज्ञान।।

वह रखता शिव ज्ञान, गमकता रहता प्रति पल।

भेदभाव से मुक्त, विचरता बनकर निर्मल।।

कहत मिश्रा कविराय, दिखे यह दुनिया प्यारी।

देवी का प्रतिमान, दिखे यदि जग में नारी।।


जिसे देख मन खुश हो जाता

                    (चौपाई)


जिसे देख मन खुश हो जाता।

हर्षोल्लास दौड़ चल आता।।

वह महनीय महान उच्चतम।

मनुज योनि का प्रिय सर्वोत्तम।।


परोपकारी खुशियाँ लाता।

इस धरती पर स्वर्ग बनाता।।

सब की सेवा का व्रत लेकर।

चलता आजीवन बन सुंदर।।


कभी किसी से नहीं माँगता।

अति प्रिय मादक भाव बाँटता।।

मह मह मह मह क्रिया महकती।

गम गम गम गम वृत्ति गमकती।।


उसे देख मन हर्षित होता।

अतिशय हृदय प्रफुल्लित होता।।

मुख पर सदा शुभांक विराजत।

दिव्य अलौकिक मधुर विरासत।।


रचनाकार:डॉ०रामबली


मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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