नूतन लाल साहू

बाधाओं से कैसा घबराना

नदी नाले की पानी
तब तक निरंतर, बहता रहता है
जब तक वह समुद्र में
नही मिल जाता है
धरती की बड़ी बड़ी चट्टाने भी
उसके वेग को रोक नहीं पाया है
मार्ग की सभी बाधाओं को
नजर अंदाज करना पड़ता है
जब पानी अपने लक्ष्य तक
पहुंचने में सफल हो सकता है
तो आप तो इंसान है
सुर दुर्लभ मानव तन पाया है
फिर भी क्यों घबराता है
जो बिना संघर्ष मरता है
उसे भगवान भी माफ नहीं करता है
सतगुरु ने पूरण ज्ञान दिया है
भव तरने का सामान दिया है
सत्संग का प्याला
जो पियेगा,वह है किस्मत वाला
मोह माया के नशे में
खुशी की तलाश में
व्यर्थ ही फिरता रहता है
इंसान जहां में
मोह माया के बंधन छूटे
मेरी तेरी के भरम भी टूटे
इसीलिए प्रभु जी ने
एक शब्द दो कान दिया है
एक नजर दो आंख दिया है
और इंसान को ही
ज्ञान की ज्योति दिया है
हमें तो लक्ष्य तक जाना है
बाधाओं से कैसा घबराना
आप ही अपनी जिंदगी का
शिल्पकार है

नूतन लाल साहू

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