विनय साग़र जयसवाल

ग़ज़ल

आपके इनकार कितने हो गये
पैदा यूँ आज़ार कितने हो गये

साक़िया ने की इनायत इस कदर
हम भी अब मयख़्वार कितने हो गये

 कल जो कहते थे फ़कत दुश्मन मुझे
  वो मेरे ग़मख़्वार कितने हो गये

 भर दिया दामन हमारा प्यार से 
आज वो दिलदार कितने हो गये

देखकर जान-ए-जहां के हुस्न को 
इश्क़ के बीमार कितने हो गये

तज़मीन
हो गयी चौड़ी सड़क तो शहर की 
बेदर-ओ-दीवार कितने हो गये 

ताजपोशी झूठ की जब से हुई 
साहिब-ए-किरदार कितने हो गये

 एक मोदी की सदा पर मुल्क में
पैदा चौकीदार कितने हो गये 

 जिसको देखो वो ग़ज़ल कहने लगा
सामइन बेज़ार कितने हो गये

जिसने सीखा फ़न को  *साग़र* शौक से 
 वो सभी  हुशियार कितने हो गये 

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
2/4/2021
आज़ार-कष्ट ,कठिनाई ,व्याधि
मयख़्वार-शराबी ,रिन्द ,मैकश 
गमख़्वार-हमदर्द,गम बाँटने वाला
सामइन-श्रोता ,
बेज़ार-अप्रसन्न ,खिन्न

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