विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

तेरे बिन दिन गुज़ारूँगा किसके लिए
नाज़ नखरे दिखाऊँगा किसके लिए

छोड़ कर तन्हा जाओ न ऐ हमनवा
घर में आकर पुकारूँगा किसके लिए

जाते जाते मेरी जां ज़रा सोच लो 
दर्दे-दिल फिर सुनाऊँगा किसके लिए

है क़सम रूठ कर तुम न जाना सनम
तुम कहो फिर मनाऊँगा किसके लिए

ख़ुश मुझे देखकर तुम ही होते हो ख़ुश
अब मैं ख़ुद को सँवारूँगा किसके लिए

उनके आने का जब कोई इम्कां नहीं
घर को आखिर सजाऊँगा किसके लिए

काट खायें न *साग़र* ये तन्हाइयाँ
पास अपने बिठाऊँगा किसके लिए
🖋️विनय साग़र जायसवाल
9/4/2021

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