डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/14)
जबसे गए छोड़ तुम मुझको,
नहीं मुझे कुछ भाता है।
शांति और सुख कहे अलविदा-
व्योम अनल बरसाता है।।

लगती कुदरत रूठी-रूठी,
फीके लगें नज़ारे भी।
अच्छे लगते नहीं गगन के,
सूरज-चाँद-सितारे भी।
खिला हुआ भरपूर सुमन भी-
मन को नहीं लुभाता है।।
   व्योम अनल बरसाता है।।

जब भी बहे पवन पुरुवाई,
पीर उठे अनजानी सी।
साँची प्रीति लगे अब मन को,
झूठी गढ़ी कहानी सी।
यही सोच कर अब दिल मेरा-
रह-रह कर घबराता है।।
    व्योम अनल बरसाता है।।

कोयल बोले भले बाग में,
अब तो हो विश्वास नहीं।
प्रियतम की रट करे पपीहा,
बुझे प्रीति की प्यास नहीं।
मधुर गीत-संगीत भी सुनकर-
कभी न हिय हुलसाता है।।
     व्योम अनल बरसाता है।।

घर वापस अब आ जा साजन,
दिल तुझको ही याद करे।
तेरा साथ मिले फिर इसको,
ईश्वर से फरियाद करे।
भूल हुई थी जो भी इससे-
सोच-सोच पछताता है।।
  व्योम अनल बरसाता है।।
  जब से छोड़ गए तुम मुझको,
  नहीं मुझे कुछ भाता है।।
          "©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511