डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(शबरी)
नवधा भक्ति उपासिका,शबरी तुम्हें प्रणाम।
खाकर जूठी बेर प्रभु,दिए तुम्हें सुर-धाम।।

जग-सेवक प्रभु राम जी,हुए बहुत अभिभूत।
पाकर तुझ सी सेविका,बेर चखे अनुकूत।।

रही ताकती देर से, प्रभु-आवन की राह।
धन्य-धन्य प्रभु राम जी,पूर्ण किए तव चाह।।

निर्मल जल,निर्मल कुटी,निर्मल मन व शरीर।
से कर प्रभु की अर्चना,दिया भगा भव-पीर।।

बिना कपट शुचि भाव से,सबको मिलते राम।
ऐसे ही शबरी तरी,रट शुचि मन प्रभु-नाम।।
          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511