डॉ0 निर्मला शर्मा

भक्त शबरी

राम नाम की धुन लगी, शबरी के मन माय।
राम नाम ही हिय बसा, करती सुमिरन जाय।
भीलपुत्री शबरी चली,मातु-पिता गृह त्याग।
सांसारिक सुख तज दिये, प्रभु चरणन अनुराग।
गुरु मतंग के आश्रम में, जपे राम का नाम।
शबरी नित आशा करे, कबहु पधारे राम।
राह बुहार शूल चुनती, मन में हरपल आस।
फूल बिछाऊं राह में, प्रभु मिलन की प्यास।
राम चरण कुटिया पड़े, खुशी न हृदय समाय।
प्रभु चरणों की धूल पा, जीवन ज्योति समाय।
घन सम नैनन नीर बहे, चरण रहा ज्यों पखार।
शबरी की भक्ति फली, मिट गये सभी विकार।
बेसुध सी शबरी हुई, चख-चख रखती बेर।
भगवन का आतिथ्य करे, उन्हें खिलाए बेर।

डॉ0 निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

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