सुधीर श्रीवास्तव

सायली छंद 
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गुमनाम
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गुमनाम
रहकर भी
काम कर जाता
बिना शोर
नाम
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बेबस
लाचार क्यों
हौसला तो कीजिए
गुमनामी से
निकलिए।
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गुमनाम
मत रहिए
कुछ नया कीजिए
पहचान बनेगी
स्वयं।
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कल 
गुमनाम था
आज नाम वाला
क्या किया
उसने।
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◆सुधीर श्रीवास्तव
     गोण्डा, उ.प्र.
    8115385921
©मौलिक, स्वरचित

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