सुनीता असीम

आंख में अश्के-रवानी दर्द की।
है यही केवल कहानी दर्द की।
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इक कसक उठती रहे दिल में कहीं।
दर्द ही  खालिस निशानी दर्द की।
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 रो रहा हो दिल मगर चहरा हंसे।
जात ये ही है      पुरानी दर्द की।
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दर्द की खुशियां लगे प्यारी इसे।
आंख करती कद्रदानी दर्द की।
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कह नहीं पाए किसी से दर्द को।
कौन सुनता खुदबयानी दर्द की
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सुनीता असीम
२८/५/२०२१

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