सुषमा दीक्षित शुक्ला

मैं श्रमिक हूँ  हाँ मैं श्रमिक हूँ  ।
समय का वह प्रबल मंजर ,

भेद कर लौटा पथिक हूँ ।
मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ।

अग्निपथ पर नित्य चलना ,
ही  श्रमिक  का धर्म है ।

कंटको के घाव  सहना ,
ही  श्रमिक  का मर्म है ।

वक्त ने करवट बदल दी,
आज अपने  दर चला हूँ।

भुखमरी के दंश से लड़,
आज वापस घर चला हूँ ।

मैं कर्म से  डरता नही ,
खोद धरती जल निकालूँ।

शहर के  तज कारखाने ,
गांव जा फिर हल निकालूँ ।

कर्म   ही मम धर्म है ,
कर्म पथ का मैं पथिक हूँ।

समय का वह प्रबल मंजर,
भेद कर लौटा पथिक हूँ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

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