सुनीता असीम

तड़पता है इंसाँ बिचारा तुम्हारा।
कि केवल है अब तो सहारा तुम्हारा।
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करो खत्म अब तो तबाही के मंजर।
बहुत हो चुका है ख़सारा तुम्हारा।
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तुम्हारी है नाराजगी की वजह क्या।
समझ में न आए इशारा तुम्हारा।
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निहोरे किए और की हैं चिरौरी।
कि रस्ता बड़ा है निहारा तुम्हारा।
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अरज आपसे है यही मेरी कान्हा।
करो पूरा अपना वो वादा तुम्हारा।
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सुनीता असीम
१४/५/२०२१

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