निशा अतुल्य

जीवन

जीवन है चलने का नाम 
पल पल हरपल चलता जाए
सुख दुख है इसके ही पहिए
जीवन गाड़ी हिचकोले खाए ।

कर्म सदा इसका है साथी
स्वाभिमान जीना सिखलाए ।
अभिमान न करो कभी भी
अंत समय कुछ संग न जाए ।

कुछ नहीं अपना है इस जग में 
जो यहॉं पाया,वो यहीं रह जाए
अच्छे कर्म किये जो हमने
वो ही अपना नाम बढ़ाए ।

कुछ नियम है इस समाज के
जीवन में सदा उन्हें निभाए ।
अपनी सभ्यता,अपनी संस्कृति
जीवन भर जग में नाम बढ़ाए ।

धैर्य और सहनशीलता 
चेहरे की मुस्कान बढ़ाए 
आए कितनी बाधाएं चाहे 
अंततःसफलता जीवन पाए।

जीवन है उसकी ही धरोहर
जब तक वो चाहे हम मुस्काए
जब हो जाए कार्य पूर्ण तो
प्रभुवर अपने पास बुलाए ।

प्रभु मिलन की चाह मन में 
नित नित अपने बढ़ती जाए
मोह माया का छूटे दामन 
भव से पार मोक्ष हम पाए ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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