कुमकुम सिंह

रेत पर मैं लिखती रही,
 और वो पानी के फवारो से मिटती रही।

कोशिश तो मैंने बहुत बार की, 
पर वो टिकने की कोई हरकत ना की।

दिल में थी बहुत से राज़, 
लेकिन वो समझने की कोशिश ही ना की।

अपनी पहचान बता दिया ,
खुद का वो भेद खोलकर ही रख दिया। 

वो क्या है, 
बिन बोले ही समझा दिया।

बात प्यार निभाने की थी,
ना की दिल्लगी थी।

उसने मेरे दिल से खेलकर ,
मेरे दिल को दहला दिया दिया।

सब्र कब तक करूं मैं, 
कब तक सहू में उसकी बेवफाई।

मुझे जिंदगी भर का दर्द दे, 
 खुद को हवा के संग उड़ा लिया।

कुमकुम सिंह

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