डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गंगा दोहा-चौपाई मिश्रित प्रयास(अवधी में)
             गंगा माँ
अहहि गंग-जल परम पुनीता।
भगत पान करि भवहिं अभीता।।

करि स्नान ध्यान करि गंगा।
नर जावहिं भव-पार उमंगा।।

दोहा-गंगा-जल अमरित अहहि, तन-मन करै निरोग।
         करि नहान यहि नीर मा, पायँ मुक्ति सब लोग।।

सगर आदि तरिगे छुइ सलिला।
कबहुँ न नीर गंग  मट मइला ।।

सुरसरि अहहि अभूषन संकर।
हरहि तुरत भव-कष्ट  भयंकर।।

दोहा-संकर-सिर-सोभा इहै,करैं इहै कल्यान।
        सकल तीर्थ इन मा बसै,सुभकर होय नहान।।

ऋषीकेस-कासी-हरिद्वारा।
बहहि गंग हरि ताप अपारा।।

संगम-गंग-जमुन-स्थाना।
तरहिं लोंग जा करि स्नाना।।

दोहा-गंग-जमुन-संगम सुखद,तीरथराज प्रयाग।
         कुंभपर्व- महिमा प्रबल,सब हिय रह अनुराग।।

सत-सत नमन करउँ कर जोरी।
सुरसरि  मातु  गंग  मैं तोरी।।

दोहा- अमरित-औषधि गंग-जल,करै जगत-कल्यान।
         धन्य भूमि भारत इहै ,जासु  गंग  सम्मान ।।
                           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                             9919446372

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