डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*
चढ़कर उन्नति की शिखर,करें नहीं अभिमान।
संभवतः कल नष्ट हो,यह अपनी पहचान।।

हाथ बढ़ाकर थाम लें,उसका भी तो हाथ।
उन्नति-शिख पर जो चढ़े,देकर उसका साथ।।

सोच सदा सहयोग की,है मानव का धर्म।
प्रेम-भाव-सहयोग से,होता उत्तम कर्म।।

कहना कभी न चाहिए,करके जग उपकार।
ऐसा करना अंत में, देता  कष्ट  अपार।।

मात्र इसी सहयोग से, होता  सदा  विकास।
जन-जन का कल्याण हो,बस यह रहे प्रयास।।

नर-नारी-सहयोग को,सृष्टि-धर्मिता जान।
मिल कर ही दोनों करें,जीवन में उत्थान।।

विश्व-एकता तब रहे,जब हो उत्तम सोच।
करें भलाई मिल सभी,सबकी निःसंकोच।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

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