डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(भोर)
पंछी-कलरव भोर का,देता हर्ष अपार।
जीवन के संगीत का,यही दिव्य आधार।।

भोर तिमिर-उर फाड़ कर,दे जग को उजियार।
उदित सूर्य की लालिमा,सुंदरता-आगार।।

जल-थल-नभ तीनों दिखें,परम दिव्य शुचि लोक।
भोर-भास्कर-किरण पा, प्राणी  रहें  अशोक।।

भोर-काल के सूर्य को,सब जन करें प्रणाम।
सूर्य-नमन के लाभ का, लगे न कोई दाम।।

तन-मन को ऊर्जा मिले, महिमा भोर महान।
भोर-काल का है यही, अति उत्तम अवदान।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

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