नूतन लाल साहू

आ गया आषाढ़

सागर की उत्ताल तरंगे
व्याकुल हो कुछ मचल रही है
उठ पूरब से काला बादल
कड़क रहा है चमक रहा है
मानों यह संकेत है
आ गया आषाढ़
भू की प्यास मिटाने को वो
आतुर सी व्याकुल सी बदरी
आ नीचे चंचल बूंदे संग
भू से मिलना चाह रही है
मानों यह संकेत है
आ गया आषाढ़
कभी झर झर झर झर
कभी छल छल छल छल
तो कभी जोरों से बरसी
तन भी भींगा,मन भी भींगा
शीतल जल से सहला रही है
मानों यह संकेत है
आ गया आषाढ़
दौड़ पड़े है खेतों की ओर
ट्रैक्टर लिए किसान
मन प्रफुल्लित तन प्रफुल्लित
गूंज उठी है,खेत खलिहान
रिमझिम रिमझिम बरसते पानी में
कुछ अंधेरा कुछ उजाला
वाह, क्या समा है
उठ पूरब से काला बादल
कड़क रहा है चमक रहा है
मानों यह संकेत है
आ गया आषाढ़

नूतन लाल साहू

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