डॉ० रामबली मिश्र

वर्ण पिरामिड

जाओ
घर में
जाना मत
बने रहना
लोग तरसते
तुम अनमोल हो
कभी बाहर न रह
दीदार तेरा हो सतत।

छू
लेना
बहुत
मनहर
छाँव शीतल
शील बनकर
मधुर तरुवर
के तले योगी सदा हो
 अटल सा होना सतत।

क्या
मिला
सुन ले
अगर तू
आ सका नहिं
काम जनहित
कर भला सबका 
सहज में चाह यदि
कल्याण की हो कामना।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

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