वर्ण पिरामिड
आ
जाओ
घर में
जाना मत
बने रहना
लोग तरसते
तुम अनमोल हो
कभी बाहर न रह
दीदार तेरा हो सतत।
छू
लेना
बहुत
मनहर
छाँव शीतल
शील बनकर
मधुर तरुवर
के तले योगी सदा हो
अटल सा होना सतत।
क्या
मिला
सुन ले
अगर तू
आ सका नहिं
काम जनहित
कर भला सबका
सहज में चाह यदि
कल्याण की हो कामना।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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