नूतन लाल साहू

मैं राही हूं

मैं राही हूं
मुझे जाना है,भवसागर पार
कितना सुग्घर कितना प्यारा
मानुष देह मिला है
मुझे लड़ना है
वो भी स्वयं से
मैं राही हूं
मुझे जाना है, भवसागर पार
जो होता है डरपोक
वो कहता फिरता है
यहां हर मोड़ पर
दुश्मन खड़ा है
वो दुश्मन क्या
स्वयं का ही अहम है
मैं राही हूं
मुझे जाना है, भवसागर पार
आवेश में, न आना कभी
योग्यता,अपने ही लहू में है
अपनी योग्यता का
टेस्ट हमें लेना है
जब तक है जीवन
तब तक लड़ना है
मैं राही हूं
मुझे जाना है, भवसागर पार
स्वयं से जो लड़ा है
अभी तक,वही जीता है
जो दैव दैव आलसी पुकारे
उसे कही का नही छोड़ा है
मैं राही हूं
मुझे जाना है, भवसागर पार
कितना सुग्घर कितना प्यारा
मानुष देह मिला है
मुझे लड़ना है
वो भी स्वयं से
मैं राही हूं
मुझे जाना है, भवसागर पार

नूतन लाल साहू

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