देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

.................कागज के फूल..................

प्रकृति के फूल  तो बहुत  ही सुंदर  होते हैं।
कागज के फूलभी कम सुंदर नहीं होते हैं।।

भले ही इनमें  प्राकृतिक खुशबू  नहीं होते;
पर इनमें काँटे-सी चुभन  तो नहीं होते हैं।।

माना कि ये देवी -देवों पर नहीं चढ़ा करते;
पुजन बाद इन्हें फेंकनेभी तो नहीं होते हैं।।

खिलने वक्त  की खुबसुरती  इनमें न सही;
मुरझाने  से भी  तो कोसों  दूर ही होते हैं।।

भँवरे भले ही इन पर गुंजन न करें ,न उड़ें;
पराग चुसभागने के भय तो नहीं होते हैं।।

फूलवारी का  मजा भले हमें  न दें ये फूल;
सिंचाई  के  मेहनत भी  तो नहीं  होते हैं।।

जीवन में हो कागज  के फूल-सा"आनंद";
उतार चढ़ाव की संभावनाएं नहीं होते हैं।।

-----------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

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