डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे
जब तक बालक-रूप है,रहता नहीं विकार।
उम्र  बढ़े  तो  आ बसे, माया  का  संसार।।

नीले-पीले-बैगनी, सब  रँग  मिले  पतंग।
उड़े गगन की छोर तक,पवन-वेग-मन संग।।

प्रियतम के सँग जब बँधे,इस जीवन की डोर।
हो जाता हिय प्रियतमा, अति आनंद विभोर।।

दूर क्षितिज के पार है, बसा पिया का देश।
कब होगा उनसे मिलन , पता नहीं किस वेश??

मिलता  है आनंद  तब, जब  हो  मन  में  तोष।
संत हृदय अति विमल-शुचि,करता कभी न रोष।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

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