सत्यदेव सिंह समथर

कहीं खिलौने सा एक पल में टूट जाता है।
बहुत रोते हैं हम जब अपना रूठ जाता है।।
न दवायें काम आतीं न दुआयें काम आती
कैसे किसी ममता का आँचल छूट जाता  है
सत्यदेव सिंह आज़ाद


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...