सत्यप्रकाश पाण्डेय
चाहत...........
चाहत से जीवन सृजन,
चाहत से संसार।
चाहत से ही सुख मिले,
चाहत से ही प्यार।।
चाहत यदि कमजोर है,
तो जीवन बने धूल।
नकारात्मकता कांटे हैं,
सकारात्मक फूल।।
अति चाह असंतोष है,
अभिष्टता संतोष।
चाह से दुःख कृपणता,
चाहत है मधु कोष।।
जीवन फसल उपज रही,
चाहत है वह बीज।
एक सुखद अनुभूति मिले,
बिन चाह के खीज।।
चाहत से मिले सफलता,
चाह से ही उत्पात।
चाहत से ही सुख सृजन,
और मिटे जग रात।।
चाहत मन का शुभ शकुन,
चाह उन्नति का द्वार।
चाहत ही वह सामर्थ है,
हरे वणिक व्यापार।।
जहां चाह वहां राह है,
कहते है सब लोग।
दुःख दारिद्र का शमन,
मिलें जगत के भोग।।
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