भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा"*
(कुकुभ छंद गीत)
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विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
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*आगे-आगे बढ़ते जाना, कदम न पीछे करना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*राही! लंबा सफर तुम्हारा, मंजिल तुमको पाना है।
चलना ही तो जीवन जानो, रुकना ही मर जाना है।।
पंथ-भटक मत जाना पंथी, नव पथ तुमको गढ़ना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*प्रखर-धूप या ठंड-ठिठुरती, चाहे वर्षा या गर्मी।
कर्म-राह पर चलते रहना, बनकर नित निष्ठा धर्मी।।
तम-घेरों का जाल काटकर, पंथ-प्रभासित करना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*अनंत यात्रा के तुम राही, इसका अंत न होना है।
अग्नि परीक्षा पग-पग पर है, कब हँसना कब रोना है।।
तजकर चिंता चिंतन करना, गिरकर साथ सम्हलना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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