*समय की विवशता पर सामयिक रचना*।
शाश्वत दीप्ति अलौकिक जन-भय,
आत्म नीति अनुशासन की जय।
मानव -जाति विदीर्ण जन्म पर,
महा-विनाश कोरोना संशय।।
भयभीत धरा निःशब्द मानव मन,
काल भाल पर कातर क्रन्दन।
अखिलविश्व त्रय ताप पराभव,
कण-कण द्रवित मृत्यु का नर्तन।।
जीवन कठिन आत्म चिन्तन मे,
मजबूर समर्थ हुआ तन मन से।
चारो ओर वीरानी छायी,
अद्भूत कठिन घड़ी है आयी।
संयम ,संकल्प का अंकन कर ले।
नयनो में उजियारा भर ले।
अनुशासित रह स्वप्न सजाये।
कोरोनों को भारत से दूर भगाये।
परिस्थितियों का दास है जीवन,
शब्द स्फूर्ति परिहास है जीवन।
जीवन शाश्वत सकल भास सम,
विश्व सृज्य आभास है जीवन।।
जीवन अनुशासन का अंकुर।
स्वप्न रुप तृण सा क्षण भंगुर।
अमर आत्म नश्वर शरीर है,
सहज भाव मन सा है प्रॉकुर।
आओ प्रण ले देशभक्ति का।
मानव कल्याण की दिव्य शक्ति का।
देशप्रेम से मर मिट जाये।
समय पुकारे आत्म भक्ति का।।
कोरोना है अदृश्य बीमारी,
इससे हारी दुनिया सारी।
बड़े बड़े हुये नतमस्तक।
मानवता पर विपदा भारी।।
इसका नही मिला कोई तोड़,
प्रिय से प्रिय चले मुख मोड़।
अटल शक्ति बेहाल हो गयी।
विश्व नियन्ता पर सब छोड़।।
परीक्षा की इस कठिन घड़ी मे,
अपनों का मन सिंचन कर ले।
अनुशासित हो २हे घरों मे,,
मन भावो का अर्चन कर ले।
बच्चों के संग लाड़ लड़ाये।
मात पिता का मन बहलायें।
प्रीत पाँखुरी को जल देकर,
मम निकेत बगिया महकायें।
*"आश विपुल"* विश्वास नेह से,
विश्व विजेता भारत होगा।
कोरोना से देश रक्ष-कर।
अखिल प्रणेता भारत होगा।।
✍आशा त्रिपाठी
सहारनपुर
25-03-2020
वुद्धवार
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