नमन मंच
सादर समीक्षार्थ
ये नज़र भी मिल गई जो आज की महफ़िल में है
चाँद सा मुखड़ा तुम्हारा बस गया इस दिल में है
रो रही है रूह तेरे इश्क में मेरे खुदा
ढूंढ आँखें ये थकी तू कौन सी महफ़िल में है
लूटता है आबरू जो मारता है जीव भी
आज बैठा रो रहा वो आदमी मुश्किल में है
ढा रही कुदरत कहर ये देख कर हैरान सब
ख़ून के तू हाथ लेके छुप रहा क्यों बिल में है
बो दिए कांटे जहां में बन गये दानव सभी
सर उठाकर चल सके ये होश किस कातिल में है
संदीप कुमार बिश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511