अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पहली मुलाकात पर पेश हैं दो छंद


पहली  मुलाकात  में, और भीगती रात में,
वो गोरी बोली हमसे, क्यों राह में खड़े हो।
कब से मैं देख रही, आते जाते  मुझको तू,
देखता  हैं  घूर - घूर, यूँ  पीछे क्यों पड़े हो।
बात  मान  नही  रहे, कुछ  ध्यान  नही  रहे,
अब पीछा मेरा छोड़ो, क्यों जिद पे अड़े हो।
तेरे  जैसे  दीवाने  भी,  देखे  हैं   बहुत  मैंने,
किसी के न हाथ  आयी, क्या उनसे बड़े हो।


 


 


पहली  मुलाकात  में, ऐसी बाते सुनकर,
मेरे  हाथ  पाँव  झन्न, झन्न   करने  लगे।
साहस  बटोरकर, मैंने  कहा  प्रिये  सुनो,
जब  से   देखा  तुमको, हम  मरने  लगे।
मुलाकात आपसे जो, ऐसे रोज होती रही,
पीर  दिल  की  हमारे,  सारी  हरने  लगे।
ये सुनकर  मुस्काई, वो  पलकें  झुकाकर,
अब  तो   बोलने  पर,   फूल  झरने  लगे।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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