"सच और झूठ"
सच कभी नहीं हारता
वह लड़ता और ललकारता है
अपनी सच्चाई की तीर से झूठ को वेधता दहाड़ता है।
झूठ हरदम गिरता
मुँह की खाता
फिर भी निर्लज्ज
झूठ के परिधान में सजधज
एक असभ्य अपसंस्कृति
घोर विकृति
क्रूर पाषाण
जीवित निष्प्राण
मरियल और सड़ियल
ऐंठा हुआ अड़ियल
नादान और बदनाम
पतितों जैसा काम
महा वाचाल
विशुद्ध गंदी चाल
मूर्ख अभिमानी
निकृष्ट अज्ञानी
वद से वदतर
दुर्गन्ध मारता असुन्दर
दिव्यता की दुहाई देता है
कड़ाके की गर्मी में रजाई ओढ़ता है।
फिर भी सत्य को आँखें दिखाता है
घड़ियाली आँसू बहाता है।
गलत एजेंडा लेकर चलता है
हाथ में टूटा हुआ डंडा लेकर घूमता है
दरिन्दगी की हद है
नापाक सरहद है
ऐ झूठ!कुटिल इंसान!
सत्य महान है
सच्चा इंसान है
मानव के वेश में भगवान है
चिरजीवी परम शक्तिमान है।
तुम उसे दबा नहीं सकते
खुद को बचा नहीं सकते।
सच अजर अमर है
झूठ!तू मृतक घर है
सच से उलझो नहीं,उसका सम्मान करो
उसपर अभिमान करो।
उससे जलो नहीं
अपना हाथ मलो नहीं।
सत्य अपराजित अविभाजित है
तू विखण्डित समाज द्रोही घटिया कुरूप त्याज्य वृत्त है।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
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