सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"ख़्वाहिश"*
"ख़्वाहिशें बढ़ती रही जीवन की,
संग अपनो का-
छूटता रहा।
अपनों के छल से साथी,
जीवन में मन-
टूटता रहा।
कटुता और टूटन मन की,
उससे जीवन-
बिखरता रहा।
बढ़ती रहीं आगे बढ़ने की ख़्वाहिश,
रूका न सफ़र जीवन का-
बस अपनों का संग छूटता रहा।
ख़्वाहिशें बन गई अभिशाप,
जीवन में घर -
ढूँढ़़ता रहा।
ख़्वाहिशें बढ़ती रही जीवन की,
संग अपनों का -
छूटता रहा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
 sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          18-03-2020


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