हाइकु
21.4.2020
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन
नमन करो
नित माँ धरती को
देती जीवन।
क्षुधा मिटाती
है पोषण करती
श्रम जननी।
किया दोहन
नही छोड़ी नदिया
रूष्ट प्रकृति।
वृक्ष भी काटे
बना नए भवन
क्यों है लालसा।
हो संवर्धन
लगाओ नए वृक्ष
हो संतुलन।
वृक्ष से वायु
होती है निर्मल
मेघ बरसे।
बोझिल साँसे
दूषित है नदिया
फैकों ना कूड़ा।
शुद्ध विचार
शुद्ध हो व्यवहार
जीवन शुद्ध।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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