सुनीता असीम

चाँद में ही चाँदनी जिन्दा रही।
प्यार में दिल की लगी जिन्दा रही।
***
आज वीराना हुआ चाहे शहर।
पर अजब इक खामुशी ज़िन्दा रही।
***
मौत का आया हुआ है जलजला।
बस घरों में ज़िन्दगी जिन्दा रही।
***
यूं अंधेरे से भरा था आसमां।
चांद की पर रोशनी जिन्दा रही।
***
हो भले साया दुखों का खत्म हों।
शुष्क आंखों में नमी जिन्दा रही।
***
सुनीता असीम
१/४/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511