सरे बाजार वीरानी बहुत है।
हुई मायूस जिंदगानी बहुत है।
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छिपे हैं रोग से डरकर सभी अब।
हुई अब तक वो नादानी बहुत है।
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सफीना डूबता अक्सर वहीं पर।
समंदर में जहां पानी बहुत है।
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कि धोते हाथ तुम रहना हमेशा।
परेशानी ये अनजानी बहुत है।
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न देखें धर्म जाति ये करोना।
इसे लेनी तो कुरबानी बहुत है।
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जिसे हो जान की परवाह सुन लो।
कयामत की घड़ी आनी बहुत है।
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सड़क पर जा रहे देखो संभलना।
मिलेगी मौत आसानी बहुत है।
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सुनीता उपाध्याय
21/4/2020
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