सुनीता असीम

दिल ये जलता सा अंगारा था कभी।


 


इक पड़ा जबसे शरारा था कभी।


 


****


 


खेल उल्फत का रहे थे खेलते।


 


बस वफ़ाओं से गुज़ारा था कभी।


 


****


 


खूबसूरत साथ साथी का मिला।


 


प्यार उसका बस हमारा था कभी।


 


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दिल्लगी सी कर रही थी जिन्दगी।


 


सिर्फ यादों का सहारा था कभी।


 


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हस रहे थे तब यहां हमपर सभी।


 


दिल रहा कितना बिचारा था कभी।


 


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सुनीता असीम


 


15/6/2020


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