अब मैं कहलाता नहीं इंसान हूँ।
एक रोज़ एक राक्षस और भूत
के सामने एक आदमी आ गया।
दोंनों का चेहरा आदमी को देख
एक दम सकपका गया।।
आदमी बोला हटो सामने से,
जानते नहीं मैं कौन हूँ।
मैं मानव भी हूँ।
मैं दानव भी हूँ।।
तुम दोंनों को मुझ से डरना चाहिये।
अपनी रक्षा का उपाय करना चाहिये।।
मैं नारी की भांति तुम दोनों को भी
मसल सकता हूँ।
तुझ से पहले मैं अपने स्वार्थ के
मौके लपक सकता हूँ।।
तुम क्या हो भूत प्रेत पिशाच चुड़ैल
क्या हो तुम।
पर मुझ से तेरा कोई मुकाबला नहीं है।
अब तेरा मेरा कोई साबका नहीं है।।
तुझ से मनुष्य जाति अब डरती नहीं है।
बचने को तुझसे कोई जादू टोना करती नहीं है।।
अब आदमी आदमी से बचने को तंत्र मंत्र करता है।
किसी के किये का पाप आदमी दूसरा
भरता है।।
अब मेरे काटे का कोई ईलाज नहीं है।
मेरे जैसा तेरे पास कोई रियाज़ नहीं है।।
जिस पेड़ पर तू रहता है वह मैं काट देता हूँ।
भाई को भाई से बाँट देता हूँ।।
मत रोक मेरा रास्ता मुझे जाने दे।
अपनी खैर को जरा मनाने दे।।
मैं सांप नाथ से भी अधिक खतरनाक हूँ।
मैं नागनाथ सा भी एक विश्वास घात हूँ।।
*मैं हैवान हूँ।।*
*मैं शैतान हूँ।।*
*मैं अब कहलाता नहीं इंसान हूँ।।*
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
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