संजय जैन

हिंदी मेरी मां है तो


उर्दू है मेरी खाला।


दोनों ने ही मिलकर 


मुझे बचपन से है पाला।


दोनों की रहनुमा ने


लेखक कवि बना डाला।


कैसे मैं भूल जाँऊ


अपनी दोनों मांओ को।


जो कुछ भी में बना हूँ


दोनों के ही कारण।।


 


हिंदी और उर्दू ने 


मुझको दिलाई सौहरत।


बैठा हूँ जो शिखर पर


इबाद है सब उनकी।


जब भी में गिरा तो


थमा है इन दोनों ने।


फिर से मुझे चलना 


इन दोनों ने सिखाया है।


कैसे में अपनी माँ और 


खाला को भूल जाँऊ।।


 


कितने कमीने और 


खुदगर्ज होते है इंसान।


मतलब के लिए अपने


मां और खाला को लड़वाते है।


और उनकी गर्म हवाओं में 


रोटियां अपनी शेखते है।


पर फिर भी अलग नहीं


कर पाते दोनों बहिनों को।।


हिंदी मेरी मां है तो


उर्दू है मेरी खाला।


दोनों ने ही मिलकर 


मुझे बचपन से है पाला।।


 


संजय जैन मुम्बई


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