जब भी देखा आंखें मलके।
बदरा थे आंसू बन छलके।
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नाम नहीं लेती रूकने का।
बारिश पड़ती सिर्फ मचलके।
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जीवन धारा टेढ़ी होती।
चलना इसमें खूब संभलके।
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मुश्किल जीना आज हुआ तो।
कैसे देखूं सपने कलके।
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कश्ती गोते खाती मेरी।
आंचल मेरा जब भी ढलके।
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हर घर में अंधेर मचा है।
घर से देखो आप निकलके।
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कीचड़ ही कीचड़ है जग में।
गिर मत जाना यार फिसलके।
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सुध ले ली रब ने जब मेरी।
ख़ाक़ हुई दुनिया फिर जलके।
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सुनीता असीम
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