सुनीता असीम

जब भी देखा आंखें मलके।


बदरा थे आंसू बन छलके।


***


नाम नहीं लेती रूकने का।


बारिश पड़ती सिर्फ मचलके। 


***


जीवन धारा टेढ़ी होती।


चलना इसमें खूब संभलके।


***


 मुश्किल जीना आज हुआ तो।


कैसे देखूं सपने कलके।


***


कश्ती गोते खाती मेरी।


आंचल मेरा जब भी ढलके।


***


हर घर में अंधेर मचा है।


घर से देखो आप निकलके।


***


कीचड़ ही कीचड़ है जग में।


गिर मत जाना यार फिसलके।


***


सुध ले ली रब ने जब मेरी।


ख़ाक़ हुई दुनिया फिर जलके।


***


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511