निशा अतुल्य

चूं चूं करती आई चिड़िया


ढेंरों शिकायत लाई चिड़िया


कहीं नहीं हरियाली दिखती


ठाँव कहाँ पर पाए चिड़िया।


 


चुन्नू थोड़ा पानी रखो


दाना भी तुम पास ही रखो


देखो भीगे पंखों को लेकर 


अब कहाँ पर जाये चिड़िया ।


 


रोज सवेरे तुम्हें उठाती 


मीठे मीठे गीत सुनाती


चीं चीं करती रहती 


सुस्ती सबकी दूर भगाती ।


 


चिड़िया का संरक्षण करना


पेड़ों से है धरा को भरना


पर्यावरण जब रहे सुरक्षित


संतुलन भी तभी है बनता ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


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