सुनीता असीम

ब्याज जब भी लगान से निकला।


 


दम लगा के किसान से निकला।


 


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माल बाजार से हुआ गायब।


 


रख छिपा था दुकान से निकला।


 


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मुंह खुले जब कभी बिना सोचे।


 


तीर लगता कमान से निकला।


 


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बोलती बंद की गई उसकी।


 


लफ्ज़ कड़वा जुबान से निकला।


 


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होश गुम हो गए सभी के तब।


 


पानी ऊपर निशान से निकला।


 


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सुनीता असीम


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