संजय जैन

एक आस


 


न खुशी की कोई लहर, 


हमे आगे दिखती है।


जीवन और मृत्यु का डर, 


अब हमें नहीं लगता है।


बस एक आस दिल में,


सदा में रखता हूँ।


अकाल मृत्यु मेरी,


इस काल में न हो।।


 


न कर पाते क्रिया कर्म,


न बेटा निभा पता धर्म।


अनाथो की तरह से,


किया जाता अंतिम क्रियाकर्म।


न मुझको चैन मिलेगा,


न परिवारवालो को शांति।


मुक्ति पाई भी तो,


बिना लोगो के कंधों से।।


 


किये होंगे पूर्वभव में,


कुछ हमने बुरे कर्म।


तभी इस तरह से,


हमनें मिली है मुक्ति।


इसलिए मैं कहता हूँ,


करो अच्छे कर्म तुम।


और सार्थक जीवन जीकर,


पाओ अपनी मुक्ति को।।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन (मुम्बई)


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