सुनील कुमार गुप्ता

शीतल-छाया


आहत मन को कही साथी,


मिल जाती शीतल छाया।


अपनत्व के अहसास संग फिर,


सुख पाती अपनी काया।।


मोह-माया के बंधन संग,


खोया अपनत्व का साया।


सुख के ही सब साथी-साथी,


दु:ख में वो काम न आया।।


आहत मन को फिर जो साथी,


मिलता जो प्रभु का साया।


भक्ति में डूबा तन-मन साथी,


संताप न फिर मन आया।।"


 सुनील कुमार गुप्ता


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