*नाराजगी*
*(ग़ज़ल)*
हो सभी नाराज दिखते आज हैं।
ये बता नाराजगी क्या राज है।।
जो मिले बिन रह न पाते थे कभी।
आज बदला दिख रहा अंदाज है।।
मोड़ लेते मुँह समझकर अजनबी।
किस महल का झूलता यह ताज है।।
दिल में इनके क्या छिपा है क्या पता।
ऐंठनों में है छिपा क्या राज है।।
अर्थ मेरा खो चुका इनके लिये।
व्यर्थ मेरी जिंदगी नाराज है।।
है जगत व्यापार मण्डल सा यहाँ।
हो रहा नित मनुज नजरंदाज है।।
मत कभी होना दुःखी हरिहरपुरी।
आज सीधा कल उलटता राज है।।
है नहीं कोई यहाँ अपना कभी।
सिर्फ नाता स्वार्थ का सरताज है।।
आज हैं जो साथ में स्थायी नहीं।
बात पर किस रूठ जाये राज है।।
रचनाकार:
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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