सुनीता असीम

कोई अकेले भी हमें रोने नहीं देता।


जज़्बात का बोझा कभी ढोने नहीं देता।


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सूखी मेरी बगिया हरी होती नहीं देखो।


कुछ बीज भी माली मुझे बोने नहीं देता।


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कैसे पसारूँ पाँव छोटा है मेरा आँगन।


कुटिया मेरी कोई बड़ी होने नहीं देता।


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मेरा सुकूं दाखिल हुआ भीतर मेरे ऐसे।


वो तो किसीको चैन मेरा खोने नहीं देता।


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चढ़ती मेरे सर पे ख़ुमारी नींद की ऐसी।


पर ख्वाब जगने का मुझे सोने नहीं देता।


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सुनीता असीम


९/१०/२०२०


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