कहते भगवान राम को
करते शर्मशार भगवान को।।
त्रेता में रावण ने सीता का हरण किया।
बहन सूपनखा की नाक कान कटी
नारी अपमान में नारी का हरण किया।।
ना काटी नाक कान नारी सीता का
आदर सम्मान किया।।
चाहता रावण यदि सीता के नाक कान काट प्रतिशोध चुका सकता था जीवन की रक्षा कर सकता था।।
रावण कायर नही राम को
दी चुनौती आखिरी सांस तक
ना मानी हार ।।
बहन सम्मान में
राज्य परिवार समाज सबका
किया त्याग समाप्त।।
राम रावण युद्ध का सूपनखा
की नाक कान हीआधार।।
ना राम जानते रावण को ना
रावण का राम से कोई प्रतिकार
सरोकार।।
रावण अट्टहास करता युग का
पतन हुआ अब कितनी बार।।
द्वापर में भाई दुर्योधनन
भौजाई का चिर हरण करता।।
भरी राज्य सभा मे द्रोपदी
नारी मर्यादा को तहस नहस
करता।।
पति परमेश्वर ही पत्नी का
चौसर पर दांव लगाता कितना
नैतिक पतन हुआ ।। रावण
लज्जित कहता कैसे मानव
कैसा युग राम कहाँ महिमा
मर्यादाओ का युद्ध कहाँ।।
स्वयं नारायण कृष्ण द्रोपदी
मर्यादा का मान धरा।
कब तक आएंगे भगवान
करने मानवता की रक्षा।।
रावण कहता बड़े गर्व से
राम संग भाई चार ।।
राम लखन बन में भरत शत्रुघ्न
कर्म धर्म तपोवन साथ।।
द्वापर में भाई भाई का शत्रु
पिता मात्र कठपुटली आँखे
दो फिर भी अंधा ।।।
पिता पुत्र
दोनों ही स्वार्थ सिद्धि में अंधे
रिश्ते परिहास कुल कुटुम्ब
मर्म मर्यादा का ह्रास।।
रावण कलयुग देख बदहवास
रावण को स्वयं पर नही
होता विश्वाश।।
कलयुग में तो रावण का
नही नाम निशान ना राम
कही दृष्टिगोचर चहुँ ओर भागम
भाग हाहाकार।।
एक बिभीषन से रावण का सत्यानाश
अब तो हर घर परिवार में विभीषण
कुटिलता का नंगा नाच।।
महाभारत में तो भाई भाई आपस
में लड़ मरके हुए समाप्त।
भाई भाई का दुश्मन पिता पुत्र
में अनबन परिवार समाज की
समरसता खंड खंड खण्डित राष्ट्र।।
बृद्ध पिता बेकार पुत्र समझता भार
एकाकीपन का पिता मांगता
जीवन मुक्ति सुबह शाम।।
घर मे ही बहन बेटी
नही सुरक्षित रिश्ते ही रिश्तो की अस्मत को करते तार तार।।
बदल गए रिश्तों के मतलब
रिश्ते रह गए सिर्फ स्वार्थ।।
एक विभीषण कुलद्रोही दानव
कुल का अंत।
घर घर मे कुलद्रोही मर्यादाओ का
क्या कर पाएंगे राम स्वयं भगवंत।।
अच्छाई क्या जानो तुम भ्रष्ट ,भ्रष्टाचारी
अन्यायी ,अत्याचारी शक्ति शाली
राम राज्य की बात करते आचरण
तुम्हारा रावण दुर्योधन पर भारी।।
रावण के मरने जलने का
परिहास उड़ती कलयुग
कहता रावण गर्व से राम राज्य तो ला नही सकते ।।।
रावण की जलती ज्वाला से
राम नही तो रावण की अच्छाई
सीखो।।
शायद कलयुग का हो उद्धार
डूबते युग समाज मे मानवता
का हो कुछ कल्याण।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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