डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-22


लंका महँ सभ रहहिं ससंकित।


करि सुधि कपि बहु होंहिं अचंभित।


    अस बलवान दूत अह जाकर।


     कइसन होई तेजहिं ताकर।।


अस सभ कहहिं जाइ क निसिचरी।


भरि जल नयन भवन मँदोदरी।।


      बिकल होइ मंदोदरि रानी।


      पति कै चरन धरी दोउ पानी।।


कही नाथ मानउ मम कहना।


उचित नहीं रामहिं सँग लड़ना।।


      जासु दूत सुधि करि इहँ नारी।


      श्रवहीँ गरभ जिनहिं ते धारी।।


तासु नारि जनु सक्ति-स्वरूपा।


बिनु बिलंबु तेहि भेजहु भूपा।।


     सीय करी बिनास कुल-बंसज।


      करहि सीत-ऋतु जस कुल पंकज।।


राम-बिरोध नाथ नहिं नीका।


ब्यर्थ लगहिं तुम्ह अपजस-टीका।।


     राम-बिरोध बिरोधय नीती।


     करहिं न कोऊ तव परतीती।।


नारि चोराइ कबहुँ नहिं जोधा।


कहलाए जग पुरुष-पुरोधा ।।


दोहा-सुनहु नाथ इह मम बचन,धारि हियहिं महँ ध्यान।


         लगहिं निसाचर दादुरइ, अहि समान प्रभु-बान।।


                               डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                                9919446372


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