डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-21


आए तहँ बहु कपि अरु भालू।


गरजहिं-तरजहिं बहु बिक़रालू।


     निरखि-निरखि कपि-भालू-सेना।


     कृपा करहिं प्रभु भरि-भरि नैना।


पाइ कृपा-बल प्रभुहिं अपारा।


मनु ते भए परबताकारा ।।


     गिरि सपंख इव जनु धरि देही।


     प्रभु सँग करहिं पयान सनेही।।


भयउ सुखद सगुनइ तेहि काला।


लखि-लखि प्रभु-बल-सैन निराला।।


    बाम अंग सिय फरकन लागा।


    रावन दाहिन परम अभागा।।


नीति कहै जब सुभ कछु भवहीं।


अस सुभ सगुन होत सभ लखहीं।।


     सीय जानि जनु राम-पयाना।


     पावहिं सुभ संकेत सुहाना।।


सेना बानर-भालू चलहीं।


गरजत-तरजत कहि नहिं सकहीं।।


    भालू-कपि-नख होंहिं भयंकर।


    सस्त्र-कर्म तिन्ह करहिं निरंतर।


पादप इव धरि निज-निज काया।


चले गगन-पथ करि जनु माया।।


     केहरि-नाद करहिं मग माहीं।


     डगमग महि निज भार कराहीं।।


चहुँ-दिसि दिग्गज करहिं चिघाड़ा।


उमड़इ सागर, बजइ नगाड़ा।।


     चंचल हो जनु परबत घहरैं।


     महि डोलै,तरु-गृह जनु भहरैं।।


सुर-नर-मुनि अरु किन्नर-देवा।


परम मुदित भे सभ गंधरवा।।


     जनु सहि सकहिं न महि-बल सेषा।


     कच्छप-पीठहिं अहिन्ह-नरेसा।।


खुरचहिं निज दसनन तें मोहित।


लिखहिं बयान राम जनु सोभित।।


दोहा-साथ लेइ कपि-रीछ-बल,सागर-तट प्रभु जाहिं।


       उतरि तहाँ कपि-रीछ सभ,घुमरि-घुमरि फल खाहिं।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                      9919446372


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