डॉ० रामबली मिश्र

 आयु..


(दोहा)


 


आयु किसी की पूछ मत, यह नश्वर है देह।


क्षणभंगुर इस देह में, आतम का है गेह।।


 


घटती जाती आयु है, मरते जाते लोग।


सर सर सरकत जगत में, रोग-भोग का योग।।


 


जड़वत सारे जगत का, मत पूछो कुछ हाल।


जड़ रोता है रात-दिन, चेतन है खुशहाल।।


 


घटती प्रति पल आयु है, बढ़ती देह मशान।


देह भोगती कर रही, लगातार प्रस्थान।।


 


इसमें क्या है जानना, किसकी क्या है आयु?


आयु अवस्था देह की, संचालक है वायु  


 


प्राणवायु जब निकलती, दैहिक क्रिया समाप्त।


दैहिक अर्जित प्राप्त सब, हो जाते अप्राप्त।।


 


स्वयंसिद्ध सिद्धांत को, मानत नहीं जहान।


नहीं किसी को मृत्यु का, रहत कभी है भान ।।


 


डरता प्राणी मृत्यु से, फिर भी बेपरवाह।


जग जर्जर की अर्जना, हेतु सदा है चाह।।


 


वंदे!पूछो आयु मत,हर प्राणी अल्पायु।


यह खेला है पवन का, भीतर -बाहर वायु।।


 


भीतर से जब निकल कर, बाहर जाती वायु।


समझ इसी को देह की, अंतिमअसली आयु।।


 


भीतर आना जिंदगी, बाहर जाना मौत।


भीतर है तो माँ सदृश, बाहर है तो सौत।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


 


जागृत हो जा,


सत्कृत बन जा।


सबको ले जा।।


 


हृदय न तोड़ो,


सबको जोड़ो।


दिग्भ्रम छोड़ो।।


 


मसला हल कर,


एक समझकर।


आगे बढ़कर।।


 


आधारशिला,


मन उज्ज्वला।


कोई न गिला।।


 


सभी सहोदर,


गाओ सोहर।


बनो मनोहर।।


 


समदर्शी बन,


प्रियदर्शी तन।


शिवदर्शी मन।।


 


रचना करना,


सुंदर लिखना।


मानव बनना।।


 


दुःख हरते रह,


सारे गम सह।


शिव शिव शिव कह।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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