डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*प्रेम बहुत रंगीन*


 *(चौपाई ग़ज़ल)*


 


प्रेम बहुत रंगीन रसीला।


सतरंगी यह मधुर नशीला।।


 


अंग-अंग में मादकता है।


अतिशय मोहक बहुत छवीला।।


 


इसे समझ पाना दुष्कर है।


क्षण-क्षण बदलत रंग रसीला।।


 


पोर-पोर में रस-वारिद है।


टपकत रहता सदा छवीला।।


 


स्पर्श करो जिस किसी अंश को।


विद्युत तड़कत अति चमकीला।।


 


इसे नहीं खेलवाड़ समझ प्रिय।


खेल खिलाड़ी यह अलबेला।।


 


प्रेम प्रेम से सहज प्रेमरत।


ब्रह्मरूपमय मधुर-नुकीला।।


 


सारा जग इसकी मुट्ठी में।


इसके कर में सारी लीला।।


 


यह आधारशिला सृष्टी का।


प्रेम बिना नहिं जगत-कबीला।।


 


इसे भूल पाना मुश्किल है।


यह अनंत आकाश अकेला।।


 


इसके प्रति जो गलत सोचता।


वही दरिंदा दुष्ट गुरिल्ला।।


 


यह अति पावन देवालय है।


यही दिव्य रस सहज रसीला।।


 


यही देहधारी प्रिय मानव।


आत्म रूप अति सुहृद सुरीला।।


 


टपकत बूँद-बूँद यह प्रति पल।


महा रसायन मधुमय पीला।।


 


इसे ठोस-द्रव-वायु समझना।


बहु रूपी बहु मान कटीला।।


 


इसकी आँखों में जादू है।


लेता खींच सहज रंगीला।।


 


केवल इसकी पूजा करना।


पीताम्बर यह शांत प्रमीला।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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