सुनीता असीम

देख के दुख औरों के मेरा तो डरता साया।


और महफ़िल जो दिखे फिर तो उछलता साया।


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तेज रफ्तार करोना की दिखी जो उसको।


फिर तो चलने में सड़क पे भी सहमता साया।


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डोर रिश्तों की उलझती जा रही ऐसे है।


खुद के धागों में खुदी सिर्फ उलझता साया।


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आस विश्वास है भगवान में उसको जादा।


फूल पूजा के सबेरे मेरा चुनता साया।


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हो गई उनकी दिवानी यूं सुनीता अब तो।


कृष्ण के पीछे सदा चलता है उसका साया।


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सुनीता असीम


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