सुनीता असीम

 दुनिया जाने दिन क्या क्या  दिखलाएगी।

स्वप्न दिखा झूठे  सबको       भरमाएगी।

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हैरान यहाँ   इंसान  सभी होंगे      जब ।

जगवाकर इच्छाओं   को     तड़पाएगी।

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झूठे होंगे प्यार मुहब्बत के      नाते।

तुमसे रोज चरण अपने    धुलवाएगी।

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अग्नि विरह में तड़़पेंगे  तन मन दोनों।

 चैन नहीं देकर दुख में भी    पाएगी।

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रीता होगा मन चोटों से अपना जब।

रोज कुरेदे ज़ख्म़ नया करवाएगी।

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खिल जाएंगे रंग हजारों जीवन में।

अपनी दुनिया खुल के जब मुस्काएगी।

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कृष्ण पुकारे आज सुनीता तुमको रो।

दासी  तेरी  तुमको  ही     बुलबाएगी।

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सुनीता असीम

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